आज का विषय है ‘वर्तनी’। वर्तनी शब्द ‘वर्तनी’ से बना है, जिसका अर्थ होता है ,अनुवर्ती करना या पीछे- पीछे चलना। अलग शब्दों में कहें तो लिपि- चिन्हों के क्या रूप हो, और उनका संयोजन कैसा, हो यह कार्य वर्तनी का ही होता है। वर्तनी को हिज्जे,अक्षरों या स्पेलिंग भी कहते हैं। किसी भी भाषा की समस्या ध्वनियों को सही ढंग से उच्चारित करने के लिए ही वर्तनी की एकरूपता स्थिर की जाती है।
वर्तनी किसे कहते हैं?
वर्तनी की परिभाषा: वर्तनी का दूसरा नाम वर्ण -विन्यास भी होता है। सार्थक ध्वनियों का जो समूह होता है, वह शब्द कहलाता है। शब्द में प्रयुक्त ध्वनियों को जिस क्रम से उच्चारित किया जाता है, लिखने में भी उसी क्रम से विन्यस्त करने का नाम वर्तनी या वर्ण विन्यास है।
अगर सरल शब्दों में कहें तो यह होगा कि वर्तनी के अंतर्गत शब्द ध्वनियों को जिस क्रम से और किस रूप में उच्चारित किया जाता है, उसी क्रम से और उसी रूप में उन्हें लिखा भी जाता है। अतः शुद्ध वर्तनी के लिए पहले शर्त यही होती है, शुद्ध उच्चारण करना।
जिस भाषा की वर्तनी में अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं की ध्वनियों को ग्रहण करने की जितनी अधिक शक्ति होगी,उस भाषा की वर्तनी उतनी ही समर्थ मानी जाएगी। अतः वर्तनी का सीधा संबंध भाषा पर ध्वनियों के उच्चारण से है या फिर हमें और सरल शब्दों में जानना है तो लिखने की रीति का वर्णन कहते हैं । मान लीजिए उदाहरण के तौर पर यदि हम ‘अक्षर’ का उच्चारण ‘अच्छर’ करेंगे, तो ‘अक्षर’ की वर्तनी शुद्ध नहीं लिख सकते।
हम अब आपको कुछ शब्द का उदाहरण देते हैं जिनकी शुद्ध और अशुद्ध वर्तनी मौजूद है।
अशुद्ध शुद्ध
अर्यावर्त आर्यावर्त
अवाज आवाज
अकाश आकाश
अजमाइश आजमाइश
अहार आहार
नदान नादान
भगीरथी भागीरथी
आशिवार्द आशीर्वाद
इश्वर ईश्वर
सूचिपत्र सूची पत्र
महिना महीना
इद ईद
उधम ऊधम
साधू साधु
दूबारा दुबारा
उष्मा ऊष्मा
रिगवेद ऋग्वेद
रिषि ऋषि
तृकोण त्रिकोण
त्रितीय तृतीय
रिधि रिद्धि
मेसूर मैसूर
टेक्स टैक्स
गोतम गौतम
त्यौहार त्योहार
प्राय पाय:
विशेश विशेष
ऊपर लिखे शब्दों के अलावा भी हिंदी व्याकरण में कई प्रकार के और शब्द मौजूद है, जो वर्तनी के आधार पर अन्य प्रकार से लिखें और बोले जाते हैं।
भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय की “वर्तनी समिति” ने 1962 में जो उपयोगी और सर्वमान्य निर्णय किए वे इस प्रकार से है:-
1 हिंदी के विभक्ति चिन्ह, सर्वनामों को छोड़कर शेष सभी प्रश्नों में, शब्दों से अलग लिखे जाए। उदाहरण के लिए: सोहम ने कहा; स्त्री को।
2 संयुक्त क्रिया में सभी अंगभूत क्रियाएँ अलग रखी जाए। जिससे पढ़ा करता है, आ सकता है।
3 पूर्वकालिक प्रत्यय “कर” क्रिया से मिलाकर लिखा जाए। जैसे मिलाकर, रोकर ,सोकर।
4 ‘तक’,’साथ’ आदि अव्यय अलग लिखे जाय। जैसे आपके साथ, यहां तक।
5 ‘सा’,’जैसा’ आदि सारूप्य वाचको के पूर्व साइमन का प्रयोग किया जाना चाहिए। जैसे तुम सा ,राम जैसा।
6 द्वंद समास में पदों के बीच हाई फन यानी (योजक चिन्ह)लगाया जाए।जैसे- राम -लक्ष्मण, शिव -पार्वती।
7 तत्पुरुष समास में हाइफन का प्रयोग केवल वही किया जाए, जहां उसके बिना भ्रम होने की संभावना है, अन्यथा नहीं। जैसे-भू-तत्व।
8 जहां वर्गों के पंचमाक्षर के बाद उसी के वर्ग के शेष चार वर्णों में से कोई वर्णन हो, वहाँ अनुस्वार का ही प्रयोग किया जाए। जैसे नंद, नंदन,वंदना
9 नहीं,मै,है, मै इत्यादि के ऊपर लगे मात्राओं को छोड़कर से आवश्यक स्थानों पर चंद्रबिंदु का प्रयोग करना चाहिए नहीं तो हंस और हँस का अंगना और अँगना का अर्थ भेद स्पष्ट नहीं होगा।
10 अरबी फारसी के वे शब्द, जो हिंदी के अंग बन चुके हैं ,और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है, उन्हें हिंदी रूप में ही स्वीकार किया जाए। जैसे जरूर,कागज।
अंतिम विचार
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