उत्तक किसे कहते हैं परिभाषा, प्रकार (भेद) एवं उदाहरण

Rahul Yadav

दोस्तों, आज हम बात करेंगे जीव विज्ञान विषय के उत्तक शब्द के बारे जिसमें उत्तक की परिभाषा के साथ साथ उसके सभी प्रकार और कार्य के बारे में भी पूरी जानकारी दी जाएगी विज्ञान के सभी सभी प्रकार के टॉपिक अपने आप में जटिल होते हैं जिन्हें समझना थोड़ा मुश्किल होता है। लेकिन यहाँ आपको बहुत ही सरल भाषा में उत्तक के बारे में पूरी जानकारी दी गई है। आइए सबसे पहले जानते हैं कि उत्तक क्या है?

उत्तक क्या है?

दोस्तों, हमारा शरीर बहुत सारी कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। हमारे शरीर में असंख्य कोशिकाएं पाई जाती है। हम कह सकते हैं कि यदि हमारे शरीर का कोई भी हिस्सा कोई कार्य करता है तो वह कोशिकाओं की उपस्थिति के कारण ही होता है। और बहुत सारी कोशिकाएं मिलकर समूह बनाती हैं जिनके अपने अपने एक अलग अलग कार्य होते हैं। जिसे उत्तर कहते हैं यानी की कोशिकाओं के समूह को उत्तक कहा जाता है।

सभी उत्तक के अलग-अलग कार्य होते हैं जैसे कि उदाहरण के लिए मान लिया जाता है कि एक ईंट एक कोशिका है। यदि कहीं तो को मिलाकर एक दीवार बनाई जाती है तो उस ईटों के समूह को हम उत्तक कह सकते हैं। जिसका अपना एक कोई कार्य होता है। इसी तरह से हमारे शरीर में भी उत्तक होते हैं जो अपने अपने कार्य को संपन्न करते हैं।

उत्तक जीव जंतुओं के शरीर के साथ-साथ पादपो यानि पौधों में भी यह उत्तक पाए जाते हैं लेकिन पादपों में पाए जाने वाले उत्तक जीव जंतुओं में पाए जाने वाले उत्तक से भिन्न होते हैं। यहां हम जीव जंतुओं के शरीर में पाए जाने वाले उत्तक तथा पादपो में पाए जाने वाले उत्तक दोनों के बारे में चर्चा करेंगे।
पादपों में पाए जाने वाले उत्तक

पादपों में दो प्रकार के उत्तक पाए जाते हैं

•   विभज्योतक (Meristematic Tissue) तथा 
•   स्थाई उत्तक (Permanent Tissue)

विभज्योतक उत्तक (Meristematic Tissue):-

विभज्योतक ऊतक में विभाजन करने की क्षमता होती है। यदि आप किसी पौधे को ध्यान से देखते हैं तो पता चलता है कि उसके पूरे भागों का विकास नहीं होता।

  1. बल्कि कुछ हिस्सों कहीं विकास होता है जैसे कि पौधों के जड़ों की लंबाई बढ़ती है, उनकी शाखाओं तथा पत्तियों की लंबाई भी बढ़ती है।
  2. विभज्योतक ऊतक उस स्थान पर बनते हैं जहां पर पौधे की नई कोशिकाएं बनती हैं। क्योंकि विभज्योतक ऊतक में विभाजित होने की क्षमता होती है इसलिए यह बिना किसी कार्य के लगातार विभाजित होती रहती है।
  3. जिनसे पादप की लंबाई और चौड़ाई बढ़ती रहती है। लगातार विभाजित करने के लिए इन कोशिकाओं में कई गुण होते हैं जो कि इनके विभाजन की दर को बनाए रखने में सक्षम होते हैं। 
  4. विभज्योतक ऊतक में कोशिका द्रव्य की मात्रा बहुत अधिक होती है। साथ ही साथ इनकी कोशिका भित्ति बहुत ही पतली होती है जो कि विभाजन के समय नई कोशिकाओं के बनने में अपनी भूमिका निभाती है।
    विभज्योतक ऊतक को तीन भागों में बांटा जाता है
    • शीर्षस्थ विभज्योतक
    • पार्श्व विभज्योतक
    • अंतर्विष्ट विभज्योतक।

शीर्षस्थ विभज्योतक:

यह विभज्योतक जड़ के शीर्ष भाग पर पाया जाता है और यह लगातार विभाजित होता रहता है जिससे पौधे की लंबाई भी लगातार बढ़ती रहती है।

 पार्श्व विभज्योतक:-

पार्श्व उत्तक मुख्य रूप से जड़ों वतन के आधार पर पाया जाता है। यह उत्तक पौधे की चौड़ाई को बढ़ाने का कार्य करता है।

अंतर्विष्ट विभज्योतक:-

अंतर्विष्ट विभज्योतक पत्तियों के आधार तथा तनों पर पाए जाते हैं। यह उत्तर नहीं पत्तियों के निकलने तथा शाखाओं के बढ़ने में अपना योगदान देते हैं।

स्थाई उत्तक (Permanent Tissue):-

स्थाई उत्तक पौधों की वृद्धि में अहम भूमिका निभाते हैं इन्हें दो भागों में बांटा जाता है

•   सरल स्थाई उत्तक तथा 
•   जटिल अस्थाई उत्तक।

सरल स्थाई उत्तक:- 

सरल स्थाई ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बने होते हैं। ऊतकों की संरचना और कार्य के आधार पर इन्हें तीन भागों में विभाजित किया जाता हैं।

•   पैरेंकाइमा ऊतक 
•   कोलेनकईमा उत्तक तथा
•    स्क्लेरेनकाइमा उत्तक।
• 

पैरेंकाइमा ऊतक:- 

यह तक कोशिका भित्ति वाली जीवित कोशिकाओं से बना होता है। यह उत्तक पादपो में बहुत अधिक मात्रा में उपलब्ध होते हैं। यह ऊतक पौधों को सहायता प्रदान करने के साथ-साथ भोजन तथा जल संचय करने का कार्य भी करता है।

कोलेन काईमा उत्तक:- 

यह उत्तक भी जीवित कोशिकाओं से बना एक उत्तक है कॉलम काईमा तक अनियमित रूप से पौधों पर मोटी होती है इसमें यह उत्तक बहुत ही मजबूत होते हैं तथा यह पौधों को यांत्रिक सहायता प्रदान करते हैं। इनमें लचीलापन होने के कारण यह पौधों को तेज हवाओं तथा अन्य विपरीत परिस्थितियों से टूटने से बचाते हैं। तथा यह तेज हवा में पत्तियों को फटने से भी बचाता है।

स्क्लेरेनकाइमा उत्तक:-  

इस उत्तक की कोशिकाएं मृत होती हैं तथा यह लंबी और पतली भी होती हैं। यह कोशिका पूरे पादप में जल के आवागमन के लिए सहायक होती है। जिससे भेजो तथा फलों में जल का संवहन होता है। तथा यह पौधों को मजबूती और कठोरता भी प्रदान करती है। जैसे नारियल मैं झूठ के रेशे तथा नाशपाती में दाने जैसी संरचना भी इसी उत्तक के कारण होती है। 
जटिल स्थाई उत्तक ( Complex Permanent Tissue):-
जटिल स्थाई उत्तक दो या दो से अधिक प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं। इनकी जटिल संरचना की वजह से ही इसको जटिल स्थाई उत्तक कहा जाता है।

जटिल ऊतक को दो भागो में बांटा जाता है।

•   जाइलम उत्तक तथा
•   फ्लोएम उत्तक।

जाइलम ऊतक:- 

जाइलम ऊतक पौधों में जड़ से जल तथा अन्य खनिज लवणों को ग्रहण करके पत्तियों तक पहुंचाता है। इसलिए यह उत्तर चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। इनमें से सबके अपने अलग-अलग कार्य होते हैं।

फ्लोएम उत्तक:- 

फ्लोएम उत्तक पत्तियों में निर्मित भोजन के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने का काम करता है। यह तक पूरे पादप कि प्रत्येक दिशा में गुरुत्वाकर्षण के विपरीत तथा उसकी और कार्य करता है। फ्लोएम उत्तक भी चार प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है।
जंतु में पाए जाने वाले ऊतक
दोस्तों, अब हम बात करेंगे जंतु ऊतक के बारे में यानि कि जीव जंतुओं के शरीर में जो उत्तक कार्य करते हैं उन्हें भी अलग-अलग प्रकार से विभाजित किया जाता है। जंतुओं के उत्तक पदापो के उत्तक से अलग होते हैं।

जंतुओं में पाए जाने वाले उत्तकों को चार भागों में विभाजित किया जाता है।
• उपकला उत्तक
• संयोजी उत्तक
• पेशी उत्तक तथा
• तंत्रिका उत्तक।

उपकला उत्तक:- 

उपकला ऊतक जंतुओं के शरीर में पाए जाने वाला सबसे सामान्य उत्तक होता है जो कि शरीर के सभी अंगों के ऊपर एक परत की तरह उपस्थित रहता है। उपकला उत्तक की कोशिकाएं एक-दूसरे से जुड़ी होती है पता यह एक सतह का निर्माण करती हैं।

इस उत्तक को इसके कार्य के आधार पर अलग-अलग भागों में बांटा जाता है।
• सरल शल्की उपकला उत्तक
• स्तंभ आकार उपकला उत्तक
• घनाकार उपकला उत्तक
• स्तरित शल्की उत्तक
• स्तरित घनाकार उत्तक
• स्तरित स्तँभाकार उत्तक

सरल शल्की उत्तक:- 

इस ऊतक का मुख्य कार्य विभिन्न प्रकार के चिकनाहट पैदा करने वाले पदार्थों का विसरण करना एवं उसका छनन करना होता है। यह शरीर के फेफड़ो, हृदय, रक्त वाहिनीयों यू तथा लसीका वाहिनीयों मैं पाया जाता है।

सरल स्तंभ आकार उत्तक:- 

यह उत्तक गर्भाशय नली, एवं मूत्राशय में पाया जाता है। इसका कार्य अवशोषण करना होता है।

घनाकार उपकला उत्तक:- 

यह उत्तक ग्रंथियों के स्त्रावी नलियों में तथा वृक्क नलियों में पाया जाता है। इसका मुख्य कार्य स्त्रावण एवं अवशोषण करना होता है।

स्तरित शल्की उत्तक:- 

यह उत्तक इसोफैगस, मुख तथा योनि में पाया जाता है। इसका मुख्य कार्य घर्षण को कम करना पता उसकी क्षति को कम करना होता है।

स्तरित घनाकार उत्तक:- 

यह उत्तक पसीने की ग्रंथियों, लार ग्रंथियों एवं स्तन ग्रंथियों में पाया जाता है। इस उत्तर का मुख्य कार्य है इन सभी ग्रंथियों की सुरक्षा करना।

स्तरित स्तँभाकार उत्तक:-

 यह उत्तक पुरुष की मूत्र उत्सर्जन नली, तथा अन्य ग्रंथियों की नलियों में पाया जाता है। इस उत्तक का मुख्य कार्य स्त्रावण एवं सुरक्षा करना है।
संयोजी उत्तक:- 
संयोजी उत्तक का मुख्य कार्य शरीर के सभी अंगों को तथा उत्तको को एक दूसरे केेेे साथ जोड़ कर रखना होता है। संयोजी उत्तक को 6 भागों मेंं बांटा गया है।

•    रक्त
•   अस्थियां तथा  उपास्थियां
•   टेंडन और लिगामेंट
•   वसा उत्तक
•   एरि ओलर उत्तक।

रक्त उत्तक:-  रक्त उत्तक तीन प्रकार की कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। लाल रक्त कणिकाएं, श्वेत रक्त कणिकाएं और प्लेटलेट्स। लाल रक्त कणिकाएं शरीर में ऑक्सीजन का वाहन करती हैं तथा श्वेत रक्त कणिकाएं शरीर को रोका रोगों से लड़ने की क्षमता देती है। साथ ही साथ यह उत्तक भोजन, उत्सर्जित पदार्थों और हार्मोन आदि का संवहन करने में भी मदद करते हैं।

अस्थि तथा उपास्थि उत्तक:-  अस्थि तथा उपास्थित उत्तक हमारे शरीर को मजबूती प्रदान करते हैं। यह उत्तक मांसपेशियों को जोड़ने का कार्य करते हैं जिस वजह से हम अपने शरीर को सीधा रख पाने में सक्षम होते हैं। इन उत्तर को की कठोरता के कारण यह संभव होता है।

टेंडन एवं लिगामेंट उत्तक:- यह उत्तक अस्थियों को अस्थियों से और अस्थियों को मांसपेशियों से जोड़ने का काम करते हैं। यह बहुत ही लचीले उत्तक होते हैं। जो हड्डियों के जोड़ के स्थान को चिकना बनाती हैं।

वसा उत्तक:-  वसा उत्तक हमारे शरीर में त्वचा के नीचे पाया जाता हैं। वसा उत्तक की गोलिकाएं इस उत्तक को ऊष्मा का कुचालक बना देती है।

एरिओलर उत्तक:- एरिओलर उत्तक त्वचा और मांसपेशियों के बीच रक्त नलिकाओ तथा नसों और अस्थि मज्जा में पाया जाता है। यह उत्तर शरीर को सहारा देने का कार्य करता है। तथा यह अन्य उत्तकों की मरम्मत का भी कार्य करता है।
पेशी उत्तक:- 
पेशी ऊतक को दो भागों में बांटा जाता है मसरिण पेशी उत्तक तथा रेखित पेशी उत्तक। इन उत्तको में संकुचन की क्षमता होती है। यह दोनों उत्तर शरीर के विभिन्न विभिन्न अंगों में अलग-अलग पाए जाते हैं। यह शरीर को आकार देने का कार्य करते हैं। इनके संकुचन के गुण के कारण हमारे शरीर में अनेक क्रियाएं संपन्न होती हैं। यह संकुचित अवस्था में छोटी और मोटी हो जाती है।

पेशी उत्तक को दो भागों में बांटा जाता है।

•   अनैच्छिक पेशी तथा 
•   ऐच्छिक पेशी।

अनैच्छिक पेशियां:-  इन पेशियों में हम इच्छा अनुसार संकुचन नहीं कर सकते। यह कोमल और अरेखित उत्तक से बनी होती है। यह हमारे शरीर के भीतर के अंगों रक्त वाहिकाओं तथा त्वचा में पाई जाती है। हृदय की पेशियां भी रेखित पेशी उत्तक की बनी होती है लेकिन व्यक्ति की इच्छा अनुसार आंकूचित नहीं होती है।

ऐच्छिक पेशियां:-  इन पेशियों पर हमारा नियंत्रण होता है। यह हमारी मर्जी के अनुसार संकुचित और शिथिल होती है। यह पेशियां मुख्य रूप से सिर, धड़, जीभ आदि में पाई जाती है।   

तंत्रिका उत्तक:-

तंत्रिका उत्तक तंत्रिका कोशिकाओं से बना होता है। यह बहुत ही अधिक विशिष्ट कोशिकाएं होती हैं। यह कोशिका बहुत ही संवेदनशील होती हैं। तंत्रिका कोशिका हमारे शरीर में उत्तेजना उत्पन्न करती है। जिससे हमें किसी के शरीर को छूने या अन्य वस्तु को छूने का एहसास होता है।

निष्कर्ष:-  

दोस्तों, उम्मीद है आपको हमारा यह लेख पसंद आया होगा। इस लेख में उत्तक की परिभाषा तथा उसके प्रकार को बहुत ही सरल भाषा में समझाने की पूरी कोशिश की गई है। यदि आपको हमारा यह लेख पसंद आया हैं तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूलें। यदि आप इस लेख से संबंधित कोई प्रश्न पूछना चाहते हैं तो कमेंट के माध्यम से पूछ सकते हैं। 
  
 
 

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