अलंकार कविता- कामिनी के सौंदर्य को बढ़ाने वाले तत्व होते हैं। जिस प्रकार आभूषण से नारी का लावण्य बढ़ जाता है उसी प्रकार अलंकार से कविता की शोभा बढ़ जाती है। शब्द तथा अर्थ की किस विशेषता से काव्य का श्रृंगार होता है उसे ही अलंकार कहते हैं।
अलंकार किसे कहते है?
अलंकार का सामान्य अर्थ आभूषण होता है। जिसके द्वारा किसी व्यक्ति वस्तु अर्थात पदार्थ को अलंकृत किया जाता है उसे ही हम अलंकार कहते हैं। अगर हम स्पष्ट शब्दों में कहें तो जिस प्रकार आभूषण धारण करने से नारी के शरीर की शोभा बढ़ती है वैसे ही अलंकार के प्रयोग से कविता की शोभा बढ़ती है।
अलंकार के कितने भेद हैं?
अलंकार के भेद:-
व्याकरण शास्त्र के मुताबिक अलंकार के दो भेद होते हैं:-
शब्दालंकार और अर्थालंकार
शब्दालंकार किसे कहते हैं?
शब्दालंकार- शब्दालंकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है शब्द+अलंकार। जो अलंकार शब्दों के माध्यम से कार्य को अलंकृत करते हैं वह शब्दालंकार कहलाते हैं। यानी किसी काव्य में कोई विशेष शब्द रखने से सौंदर्य आए तो वह शब्दालंकार कहलाता है। जब अलंकार किसी विशेष शब्द की स्थिति में ही रहे और उस शब्द की जगह पर कोई और पर्यायवाची शब्द के रख देने से ना रहे उसे शब्दालंकार कहते हैं।
शब्दालंकार के तीन भेद होते हैं:-
1 अनुप्रास अलंकार
2 यमक अलंकार
3 श्लेष अलंकार
अनुप्रास अलंकार- जब किसी काव्य रचना को सुंदर बनाने के लिए किसी वर्ण की बार-बार आवृत्ति हो तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है। किसी विशेष वर्ग की आवृत्ति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है।
अनुप्रास अलंकार के उदाहरण:-
मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो।
कन्हैया किसको कहेगा तू मैया।
कालिंदी कूल कदम की डरनी।
चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में।
मधुर मधुर मुस्कान मनोहर मनुज वेश का उजियाला।
अनुप्रास अलंकार के मुख्यतः पांच प्रकार के भेद होते हैं:-
1 छेकानुप्रास अलंकार
2 वृत्यानुप्रास अलंकार
3 लाटानुप्रास अलंकार
4 अन्त्यानुप्रास अलंकार
5 श्रुत्यानुप्रास अलंकार
यमक अलंकार: यमक शब्द का अर्थ होता है दो। जब एक ही शब्द ज्यादा बार प्रयोग हो पर हर बार अर्थ अलग-अलग आए वहां पर यमक अलंकार होता है।
उदाहरण के लिए:-
काली घटा का घमंड घटा।
माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर।
कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
जेते तुम तारे तेते नभ में न तारे हैं।
यमक अलंकार के भेद
यमक अलंकार के दो भेद होते हैं:-
1 अभंग पद यमक
2 सभंग पद यमक
श्लेष अलंकार: श्लेष का का अर्थ होता है चिपका हुआ या मिला हुआ। जब एक ही शब्द से हमें विभिन्न अर्थ मिल जाए तो उसे हम श्लेष अलंकार कहते हैं। उदाहरण के लिए:
जे रहीम गति दीप की ,कुल कपूत गति सोय। बारे उजियारो करें, बढ़े अंधेरो होय।
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून। पानी गए न ऊबरे, मोती मानुष चून।।
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक। जो करते विप्लव, उन्हें ‘हरि’ का है आतंक।।
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई। दुर्दिन में आँसू बनकर आज बरसने आई।
श्लेष अलंकार के भेद:-
अभंग श्लेष अलंकार
सभंग श्लेष अलंकार
अर्था अलंकार किसे कहते हैं?
अर्थालंकार- काव्य में जहां शब्दों के प्रयोग के कारण सौंदर्य चमत्कार नहीं बल्कि अर्थ की विशेषता के कारण सौंदर्य या चमत्कार आया हो वहां पर अर्थालंकार होता है। उदाहरण के लिए:-
चंचल निशी उद्देश्य रहे, करत प्रात वसिराज।
अरविंद में इंदिरा, सुंदरी नैनन लाज।।
संत हृदय नवनीत समाना, कहा कबिन्ह परि कहै न जाना।।
सिर झुका तूने नियति की मान ली यह बात। स्वयं ही मुरझा गया तेरा हृदय जलजात।।
अर्थालंकार के भेद:-
1 उपमा अलंकार
2 रूपक अलंकार
3 उत्प्रेक्षा अलंकार
4 भ्रांतिमान अलंकार
5 संदेह अलंकार
6 अतिशयोक्ति अलंकार
7 विभावना अलंकार
8 मानवीकरण अलंकार
उपमा अलंकार- जब किसी चीज की दूसरे किसी विशेष चीज के साथ तुलना की जाती है तो उसे उपमा अलंकार कहा जाता है। उदाहरण के लिए:-
पीपर पात सरिस मन डोला हरिपद कोमल कमल
रूपक अलंकार- किसी चीज के गुण या उसके रूप की समानता दूसरी चीज के गुण या उसके बीज के रूप से की जाती है ।या इसमें दो वस्तुओं को एक दूसरे का रूप दे दिया जाता है तो उसे रूपक अलंकार कहते हैं। उदाहरण के लिए:-
पायो जी मैंने प्रेम रतन धन पायो
चरण कमल बंदों हरि राइ।।
उत्प्रेक्षा अलंकार- जहां प्रस्तुत उपमेय में कल्पित उपमान की संभावना दिखाई देती है, उसे हम उत्प्रेक्षा अलंकार कहते हैं। उदाहरण के लिए:-
सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात। मनहु नील मणि शैल पर,आते परयो प्रभात।।
भ्रांतिमान अलंकार:- जिस अलंकार में उपमेय में उपमान की निश्चय आत्मक प्रतीति समानता के कारण हो और वह क्रियात्मक परिस्थिति में परिवर्तित हो जाए वह भ्रांतिमान अलंकार कहलाता है।
संदेह अलंकार- जहां एक वस्तु के दूसरे वस्तु के जैसे होने का संदेह हो जाए परंतु निश्चयात्मक ज्ञान में ना बदले वहां संदेह अलंकार होता है।
अतिशयोक्ति अलंकार- जिस अलंकार में किसी वस्तु या व्यक्ति का सही वर्णन ना करके उसे बढ़ा चढ़ा कर दिखाया जाए या बताया जाए वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है। जैसे:-
हनुमान की पूंछ में लगन पाई आग, लंका सिगरी जल गई गए निशाचर भाग।
विभावना अलंकार- जिस अलंकार में कार्य की उत्पत्ति का वर्णन कार्य के अभाव की वजह से किया जाए वहां विभावना अलंकार होता है। जैसे:- चुभते ही तेरा अरुण बाण कहते कण कण से फूट फूट मधु के निर्झर से सजल गान।
मानवीकरण अलंकार- जिस अलंकार में मूर्ति या फिर अजीवित वस्तुओं का वर्णन जीवित प्राणियों या मनुष्य की क्रियाशीलता की भांति बताया जाए वहां मानवीय कर्ण अलंकार होता है। जैसे:-
फूल हंसे कलियां मुस्काई।
निष्कर्ष
आज के इस लेख में हमने आपको अपनी तरफ से अलंकार के बारे में हर प्रकार की जानकारी देने का पूर्ण संभव प्रयास किया है इस लेख में आपको अलंकार के भेद और उनके उपदेशों के बारे में भी जानकारी प्राप्त होगी जो कि आमतौर की जिंदगी में काफी काम आएगी अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तो कृपया इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूले और अगर आपको इसमें कोई त्रुटि या फिर कोई शिकायत नजर आई हो तो कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताना ना भूले।